छठ महापर्व भारतीय परंपरा और लोक आस्था का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसे इस वर्ष 26 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा। नहाय-खाय के बाद खरना का पर्व आता है, जिसमें गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद भगवान सूर्य को अर्पित किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे धार्मिक और आध्यात्मिक कारण क्या हैं?
खरना क्या है?
खरना छठ महापर्व का पहला दिन है, जब व्रती सूर्य देव की उपासना के लिए व्रत शुरू करते हैं।
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इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं।
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शाम को सूर्य देव को अर्पित गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद तैयार किया जाता है।
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इसे ग्रहण करने के बाद व्रती चंदा से पहले दिन का व्रत संपन्न करते हैं।
गुड़ की खीर का महत्व
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ऊर्जा और शक्ति का स्रोत: गुड़ प्राकृतिक मिठास और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। दिनभर का व्रत रखने के बाद इसे खाने से शरीर को तत्काल ऊर्जा मिलती है।
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शुद्धता का प्रतीक: गुड़ को शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है। यह सकारात्मक ऊर्जा और स्वास्थ्य का संचार करता है।
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धार्मिक मान्यता: लोक आस्था के अनुसार, गुड़ की खीर भगवान सूर्य को अर्पित करने से व्रती की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
रोटी का धार्मिक महत्व
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रोटी साधारण भोजन नहीं, बल्कि स्थिरता और जीवन का आधार मानी जाती है।
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यह व्रती को संतुलित पोषण देती है और दिनभर का उपवास पूरा होने पर शरीर को ताकत देती है।
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धार्मिक दृष्टि से, रोटी और गुड़ की खीर सूर्य देव की कृपा और स्वास्थ्य का प्रतीक माने जाते हैं।
खरना का आध्यात्मिक संदेश
खरना केवल भोजन नहीं है, बल्कि यह धार्मिक अनुशासन और संयम का प्रतीक है।
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व्रती पूरे दिन संयम और तपस्या का पालन करते हैं।
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शाम को स्वादिष्ट प्रसाद ग्रहण करने से शरीर और मन दोनों का संतुलन बनता है।
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यह दिन व्रती को आध्यात्मिक शुद्धता और ऊर्जा प्रदान करता है।
निष्कर्ष
छठ महापर्व का खरना व्रतियों के लिए आध्यात्मिक और स्वास्थ्य दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।
गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद भगवान सूर्य को अर्पित करने से शरीर को ताकत मिलती है और मन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। यही कारण है कि छठ पर्व में इस परंपरा का विशेष महत्व है।
खरना हमें याद दिलाता है कि त्योहार केवल उत्सव नहीं, बल्कि संयम, श्रद्धा और स्वास्थ्य का मेल भी है।
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