दूषित रसायनों के मामलों के बाद सख्त कदम
हाल ही में खांसी की कुछ दवाओं में खतरनाक और दूषित रसायन पाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने देशभर के सभी राज्यों को निर्देश जारी किए हैं कि अब दवा निर्माण में इस्तेमाल होने वाले हाई-रिस्क सॉल्वेंट्स की पूरी सप्लाई चेन पर कड़ी निगरानी रखी जाए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी दूषित या मानक से बाहर रासायनिक तत्व दवाओं के निर्माण में न पहुंचे।
अब हर चरण पर होगी सरकारी निगरानी
CDSCO के नए निर्देशों के अनुसार, इन हाई-रिस्क सॉल्वेंट्स की उत्पादन, भंडारण, वितरण और उपयोग की पूरी प्रक्रिया अब सरकारी ट्रैकिंग सिस्टम के अंतर्गत आएगी। राज्यों के ड्रग कंट्रोलर अधिकारियों को कहा गया है कि वे नियमित रूप से इस सप्लाई चेन की जांच करें और किसी भी संदिग्ध गतिविधि या नमूने को तुरंत रिपोर्ट करें।
इसमें विशेष रूप से डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) जैसे रसायनों की निगरानी की जाएगी, जो कई बार खांसी की दवाओं में दूषित पाए गए हैं और गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं।
क्यों उठाया गया यह कदम
पिछले कुछ वर्षों में कई देशों में भारत में बनी खांसी की सिरप को लेकर विवाद सामने आए थे, जिनमें बच्चों की मौतों के मामले भी शामिल थे। इन घटनाओं में दूषित रसायनों की मौजूदगी पाई गई थी। इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी भारत सरकार से सख्त निगरानी की मांग की थी।
अब सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि सप्लायर से लेकर निर्माता और बाजार तक हर स्तर पर पारदर्शिता बनी रहे। इस कदम से न केवल देश में बनने वाली दवाओं की गुणवत्ता बेहतर होगी, बल्कि भारत की फार्मा इंडस्ट्री की वैश्विक साख भी बरकरार रहेगी।
राज्यों की भूमिका और जिम्मेदारी
राज्यों को निर्देश दिया गया है कि वे स्थानीय स्तर पर लाइसेंस प्राप्त निर्माताओं और वितरकों की जानकारी अपडेट रखें। किसी भी फैक्ट्री या वितरक को बिना लाइसेंस के ऐसे सॉल्वेंट्स की खरीद-बिक्री करने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा, राज्यों को समय-समय पर रिपोर्ट CDSCO को भेजनी होगी, ताकि राष्ट्रीय स्तर पर डेटा की मॉनिटरिंग की जा सके।
निष्कर्ष
यह कदम भारतीय फार्मास्यूटिकल सेक्टर के लिए एक महत्वपूर्ण सुधार के रूप में देखा जा रहा है। दूषित रसायनों की ट्रैकिंग और निगरानी से दवा निर्माण की प्रक्रिया अधिक सुरक्षित बनेगी और उपभोक्ताओं का विश्वास भी बढ़ेगा। सरकार का यह फैसला “सेफ मेडिसिन्स फॉर ऑल” के लक्ष्य की दिशा में एक मजबूत कदम है।
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