Chhath Mahaparva 2025: नहाय-खाय के साथ लोक आस्था के महापर्व छठ का शुभारंभ, पटना में पूरी हुई तैयारियां


 Bihar News: बिहार में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा 2025 नहाय-खाय के साथ विधिवत रूप से शुरू हो गया है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की शुरुआत के साथ ही पूरे राज्य, खासकर राजधानी पटना में धार्मिक उत्साह का माहौल देखने को मिल रहा है। महिलाएं और श्रद्धालु भक्त सूर्य उपासना के इस पर्व के लिए तैयारियों में जुट गए हैं।

नहाय-खाय से हुई छठ की शुरुआत

छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है। इस दिन श्रद्धालु घर की सफाई कर गंगा या किसी पवित्र जल स्रोत में स्नान करते हैं और इसके बाद सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। इसी के साथ उपासना का शुद्धिकरण चरण पूरा माना जाता है। आने वाले दिनों में खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य की विधियां होंगी।

पटना में प्रशासन ने की कड़ी तैयारियां

पटना जिला प्रशासन ने छठ महापर्व को लेकर व्यापक तैयारी की है। दानापुर से लेकर पटना सिटी तक 109 छठ घाट तैयार किए गए हैं, ताकि श्रद्धालुओं को पूजा के दौरान किसी असुविधा का सामना न करना पड़े।

  • इनमें से 6 घाटों को खतरनाक घोषित किया गया है, जहां सुरक्षा की दृष्टि से छठ पूजा करने और लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगाया गया है।

  • प्रशासन ने सभी घाटों पर एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें, गोताखोर और सुरक्षा कर्मी तैनात किए हैं।

  • घाटों की सफाई, रोशनी, पेयजल और मेडिकल सुविधाओं की व्यवस्था भी पूरी कर ली गई है।

श्रद्धालुओं में उत्साह का माहौल

गंगा तटों और मोहल्लों में छठ गीतों की गूंज सुनाई देने लगी है। महिलाएं पारंपरिक सूप, दउरा और टोकरी सजाने में लगी हैं, वहीं घरों में ठेकुआ, कसार और रसीया खीर बनाने की तैयारी शुरू हो गई है।
लोग अपने परिवार के साथ घाटों पर व्रत करने की योजना बना रहे हैं, जबकि कई श्रद्धालु अपने घर की छतों और आंगन में कृत्रिम तालाब बनाकर पूजा करने की तैयारी कर रहे हैं।

लोक आस्था का पर्व, सामाजिक एकता का संदेश

छठ सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, पवित्रता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाला पर्व भी है। इस दौरान पूरा समाज एकजुट होकर सूर्य और प्रकृति की आराधना करता है।

छठ महापर्व 2025 में बिहार, खासकर पटना, पूरी तरह से श्रद्धा और भक्ति में डूबा हुआ है। प्रशासनिक सख्ती और भक्तों के उत्साह के बीच यह पर्व एक बार फिर लोक आस्था की अटूट परंपरा को जीवित कर रहा है।

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