दशहरे का नाम सुनते ही आंखों के सामने रावण दहन की तस्वीर उभर आती है। चारों ओर आतिशबाज़ी, जय श्रीराम के नारे, और रावण के पुतले को जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में कुछ ऐसी जगहें भी हैं जहां रावण को नहीं जलाया जाता बल्कि उसकी पूजा की जाती है?
जी हां, मध्यप्रदेश का मंदसौर, कर्नाटक का कोलार और आंध्र प्रदेश का विजयनगरम जैसे कुछ स्थानों पर रावण को महान ज्ञानी, महापंडित और शिवभक्त मानकर पूजा जाता है।
मंदसौर में तो मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी यहीं की थीं, इसलिए यहां रावण को जमाई का दर्जा दिया गया है। दशहरे पर यहां लोग रावण की प्रतिमा को फूल चढ़ाते हैं, न कि उसे जलाते हैं।
कर्नाटक के कोलार में भी रावण की विद्वता और शक्ति की प्रशंसा होती है। माना जाता है कि रावण न सिर्फ बलशाली योद्धा था, बल्कि शास्त्रों का ज्ञाता और महान वीणावादक भी था।
ऐसे में सवाल उठता है, क्या रावण सिर्फ बुराई का प्रतीक था, या फिर एक जटिल व्यक्तित्व का धनी, जिसकी अच्छाइयों को भी समझने की ज़रूरत है?
तो इस दशहरे पर, रावण के दूसरे रूप को भी जानिए, समझिए और सोचिए, बुराई सिर्फ एक चेहरा नहीं होती, कई बार वो हमारी सोच में भी छुपी होती है।
0 टिप्पणियाँ