हर साल दीपावली आते ही रोशनी, मिठाइयों और पटाखों के साथ-साथ एक और परंपरा जोर पकड़ती हैजुए और ताश खेलने की। मान्यता है कि इस दिन माँ लक्ष्मी घर-घर में आती हैं, और इसी वजह से कुछ लोग मानते हैं कि इस दिन ताश खेलने से धन की बढ़ोत्तरी होती है। लेकिन सवाल ये है कि क्या सच में जुआ खेलने से किस्मत चमकती है, या फिर ये कंगाली की ओर ले जाने वाला रास्ता है?
दिवाली की रात को जुए को शुभ मानने की परंपरा महाभारत काल से जुड़ी मानी जाती है। कहा जाता है कि इसी दिन माँ पार्वती ने भगवान शिव के साथ पासा खेला था और आशीर्वाद दिया कि जो इस दिन ताश खेलेगा, उसके घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी। लेकिन आज के दौर में यह परंपरा एक लत बनती जा रही है। लोग थोड़े मनोरंजन के नाम पर बड़ी-बड़ी रकम दांव पर लगा देते हैं।
जहाँ कुछ लोग किस्मत के दम पर लाखों कमा लेते हैं, वहीं अधिकांश लोग हारकर आर्थिक संकट में घिर जाते हैं। कई बार यह नुकसान केवल पैसों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि रिश्तों में दरार और मानसिक तनाव भी साथ लाता है।
इसलिए ज़रूरी है कि हम परंपराओं को समझें, लेकिन अंधविश्वास का हिस्सा न बनें। ताश एक मनोरंजन हो सकता है, लेकिन जब यह जुए का रूप ले लेता है, तो दिवाली की रोशनी भी अंधेरे में बदल सकती है। समझदारी इसी में है कि हम लक्ष्मी माँ का स्वागत विवेकपूर्ण निर्णयों से करें, न कि भाग्य के भरोसे।
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