पिछले कुछ दिनों में अस्पतालों की ओपीडी में मरीजों की संख्या में तेज़ वृद्धि दर्ज की गई है। डॉक्टरों का कहना है कि श्वसन संबंधी रोगों में लगभग 20 प्रतिशत तक इज़ाफा हुआ है। खांसी, बंद गला, सांस फूलना, एलर्जी, गले में खराश और आंखों में जलन जैसी समस्याओं का बोझ बढ़ रहा है। अस्पतालों में बच्चों और बुजुर्गों की संख्या विशेष रूप से अधिक देखी जा रही है, क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है।
चिकित्सकों का कहना है कि जहरीली हवा फेफड़ों की कार्यक्षमता को कमजोर कर सकती है और लंबे समय में अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों को जन्म दे सकती है। बच्चों पर इस प्रभाव की तीव्रता ज्यादा होती है, क्योंकि उनके फेफड़े अभी विकसित हो रहे होते हैं। साथ ही, गर्भवती महिलाओं के लिए भी यह स्थिति जोखिमभरी है, क्योंकि प्रदूषण भ्रूण के विकास पर असर डाल सकता है।
दिल्ली में प्रदूषण के स्रोतों में वाहन उत्सर्जन, पराली जलाना, औद्योगिक धुआँ और निर्माण कार्य से निकलने वाली धूल शामिल हैं। सरकार द्वारा विभिन्न स्तरों पर उपाय किए जा रहे हैं, जैसे—स्कूलों में छुट्टी की घोषणा, निर्माण कार्यों पर रोक, और सड़कों पर पानी का छिड़काव। इसके बावजूद हवा की गुणवत्ता में सुधार की गति धीमी है।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि लोगों को घर से बाहर निकलने पर मास्क का उपयोग करना चाहिए। सुबह और शाम के समय, जब प्रदूषण स्तर अधिक होता है, बाहरी गतिविधियों से बचना उचित है। घरों में एयर प्यूरिफायर का उपयोग, पौधों की बढ़ोतरी व नियमित सफाई भी उपयोगी मानी जा रही है। पानी का पर्याप्त सेवन और पौष्टिक भोजन प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होते हैं।
यदि प्रदूषण पर जल्द नियंत्रण नहीं किया गया, तो यह समस्या लंबे समय तक जारी रह सकती है। बच्चों की सेहत पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव बेहद चिंताजनक हैं। अभी आवश्यकता है सख्त कदम, जनजागरूकता और सामूहिक प्रयास की, ताकि दिल्ली इस प्रदूषण संकट से राहत पा सके।
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