दुनिया भर की मनोरंजन इंडस्ट्री इस समय एक ऐसी चुनौती से जूझ रही है, जिसका अंदाज़ा कुछ वर्षों पहले तक बेहद मुश्किल था। बात हो रही है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) बनाम इंसानी क्रिएटिविटी की। हॉलीवुड और बॉलीवुड जैसी बड़ी फिल्म इंडस्ट्रीज़ अब केवल फिल्मों या संगीत की प्रतिस्पर्धा में नहीं, बल्कि इंसानी प्रतिभा को बचाने की लड़ाई में एकजुट दिखाई दे रही हैं। लगभग 13 अरब डॉलर के इस ग्लोबल क्रिएटिव सेक्टर में AI का तेजी से विस्तार कई नए सवाल खड़े कर रहा है।
AI की सबसे डरावनी क्षमताओं में कलाकारों की आवाज़, चेहरा और अभिव्यक्ति को डिजिटल रूप से कॉपी कर देना शामिल है। डीपफेक जैसी तकनीकें कुछ ही मिनटों में ऐसे वीडियो और ऑडियो तैयार कर पा रही हैं, जिन्हें पहचानना आम दर्शक के लिए लगभग असंभव हो जाता है। इससे असली कलाकारों की पहचान, मेहनत और वर्षों की कमाई हुई प्रतिष्ठा पर खतरा मंडराने लगा है। कई एक्टर्स और म्यूज़िशियन्स ने खुलकर शिकायत की है कि प्रोडक्शन हाउस बिना अनुमति उनके चेहरे या आवाज़ की डिजिटल प्रतिकृति का उपयोग कर लाखों कमाने की कोशिश कर रहे हैं।
हॉलीवुड में तो राइटर्स और एक्टर्स यूनियन ने AI को लेकर बड़े आंदोलन किए। उनकी मांग है कि किसी भी प्रोजेक्ट में AI-जनित सामग्री का उपयोग कलाकार की अनुमति के बिना न किया जाए। वहीं भारत में भी फिल्मकारों और सिंगर्स में चिंता बढ़ती जा रही है। बॉलीवुड में आवाज़ की पहचान रखने वाले गायकों का कहना है कि AI उनके वॉइस-टोन को कॉपी कर नया संगीत बना रहा है, जो न सिर्फ उनकी कमाई बल्कि उनकी कला के दायरे को प्रभावित कर रहा है। इसके चलते क्रिएटिविटी धीरे-धीरे मशीन आधारित डेटा तक सीमित होने का खतरा पैदा हो गया है।
AI समर्थकों का तर्क है कि यह तकनीक उत्पादन लागत घटाने, समय बचाने और विजुअल इफेक्ट्स को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है। इसका प्रयोग फिल्मों में स्टंट डबल्स, डेंजर सीन्स और एनिमेशन में सकारात्मक रूप से किया जा सकता है। लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब मशीनें कलाकार की जगह लेने लगती हैं। सवाल उठता है—क्या अल्गोरिद्म कभी इंसान की भावनाओं, अनुभव और कल्पना की गहराई को समझ सकता है?
इस पूरे विवाद का मूल मुद्दा ‘नियमन’ है। कलाकार नियम चाहते हैं, ताकि उनकी पहचान और बौद्धिक संपत्ति सुरक्षित रह सके। दूसरी ओर टेक कंपनियाँ नवाचार पर रोक नहीं चाहतीं। यह जंग जल्द खत्म होने वाली नहीं दिखती। आने वाले समय में कानून, एथिक्स और तकनीक मिलकर दिशा तय करेंगे—क्या इंसानी कला जीतती है, या मशीनें मंच संभाल लेती हैं? फिलहाल, भावनाओं और कला की इस जंग में दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं।
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