लाल आतंक पर बड़ा प्रहार: 208 नक्सलियों ने हथियार डाले, 110 महिलाएं और 98 पुरुष शामिल


 देश में वर्षों से चल रहे नक्सल उग्रवाद के खिलाफ एक बड़ा कदम सामने आया है। सरकार और सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई और जनजागरण अभियानों का असर अब स्पष्ट दिखने लगा है। हाल ही में 208 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया है, जिनमें 110 महिलाएं और 98 पुरुष शामिल हैं। इनमें कई बड़े कैडर के नक्सली भी हैं, जो लंबे समय से जंगलों में सक्रिय थे और सुरक्षा बलों के लिए सिरदर्द बने हुए थे।

सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की रणनीति सफल

केंद्र और राज्य सरकारों ने बीते कुछ वर्षों में नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के साथ-साथ विकास योजनाओं को भी गति दी। सड़कें, बिजली, पानी और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं को गांव-गांव तक पहुंचाने के प्रयासों ने नक्सल प्रभावित इलाकों में लोगों की सोच बदल दी है। सुरक्षा एजेंसियों की रणनीति "गन के साथ-साथ गवर्नेंस" पर आधारित रही — यानी विकास और विश्वास दोनों का समन्वय। इसी नीति का परिणाम है कि बड़ी संख्या में नक्सलियों ने हथियार डालकर शांति का रास्ता चुना।

महिलाओं की बड़ी भागीदारी

आत्मसमर्पण करने वालों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक होना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन 110 महिला नक्सलियों में से कई लंबे समय से नक्सली संगठनों के महत्वपूर्ण पदों पर थीं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव समाज में बढ़ती जागरूकता और सरकार की पुनर्वास योजनाओं की सफलता को दर्शाता है। अब ये महिलाएं सरकार की सहायता से रोजगार और शिक्षा के नए अवसरों की ओर बढ़ना चाहती हैं।

बड़े कैडर और वरिष्ठ सदस्य भी हुए शामिल

आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों में कई वरिष्ठ कैडर और कमांडर भी शामिल हैं, जिन पर भारी इनाम घोषित था। इनके समर्पण से सुरक्षा बलों को बड़ी रणनीतिक सफलता मिली है, क्योंकि इन नेताओं के प्रभाव क्षेत्र में अब नक्सली नेटवर्क लगभग खत्म होने की स्थिति में है।

मुख्यधारा में लौटने वालों के लिए पुनर्वास योजनाएं

सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए विशेष पुनर्वास योजना तैयार की है, जिसमें आर्थिक सहायता, प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर दिए जाएंगे। इन योजनाओं का उद्देश्य है कि कोई भी व्यक्ति दोबारा हिंसा के रास्ते पर न लौटे।

यह आत्मसमर्पण न केवल सरकार की नीतियों की जीत है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि हिंसा से नहीं, विकास और संवाद से ही स्थायी शांति संभव है।

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