मोटापा: बढ़ती वैश्विक चिंता
मोटापा आज केवल एक लाइफस्टाइल समस्या नहीं बल्कि गंभीर स्वास्थ्य संकट बन चुका है। यह डायबिटीज, हार्ट डिजीज, स्ट्रोक और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनियाभर में करोड़ों लोग मोटापे से जूझ रहे हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। इसी चुनौती को देखते हुए WHO ने एक बड़ा कदम उठाया है।
WHO ने जारी की वेट लॉस दवाओं की लिस्ट
हाल ही में WHO ने वेट लॉस करने वाली दवाइयों को अपनी जरूरी दवाओं की लिस्ट (Essential Medicines List) में शामिल किया है। इस सूची में GLP-1 बेस्ड दवाएं (जैसे सेमाग्लूटाइड और लिराग्लूटाइड) भी शामिल की गई हैं, जिन्हें वजन घटाने और मोटापा नियंत्रित करने में कारगर माना जाता है। इन दवाओं का उपयोग अब तक सीमित लोगों द्वारा ही किया जा रहा था, क्योंकि इनकी कीमत काफी ज्यादा है।
कीमतों पर असर
WHO की सूची में शामिल होने का मतलब है कि अब इन दवाओं को ग्लोबल स्तर पर जरूरी और प्रभावी माना जाएगा। इससे सरकारें और स्वास्थ्य एजेंसियां इन्हें बड़े पैमाने पर खरीद सकेंगी। नतीजतन, दवाओं की उपलब्धता बढ़ेगी और कीमतों में कमी आ सकती है।
भारत जैसे देशों में जहां मोटापे के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, वहां इन दवाओं के सस्ते होने की संभावना ज्यादा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार और फार्मा कंपनियां मिलकर इन दवाओं का उत्पादन और सप्लाई सुनिश्चित करती हैं, तो आम लोग भी इन्हें खरीद पाएंगे।
आम लोगों पर असर
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आर्थिक राहत – दवाओं की कीमत घटने से मध्यम और निम्न वर्ग के मरीज भी इन्हें खरीद पाएंगे।
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बेहतर इलाज – मोटापे से जुड़े जटिल रोगों के इलाज में नई उम्मीद जगेगी।
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जागरूकता बढ़ेगी – WHO की मंजूरी से इन दवाओं पर भरोसा बढ़ेगा और मोटापे को गंभीर बीमारी मानने की सोच मजबूत होगी।
निष्कर्ष
WHO का यह कदम मोटापे की रोकथाम और इलाज की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। अगर भारत में इन दवाओं की कीमतें कम होती हैं, तो मोटापे से जूझ रहे लाखों मरीजों को बड़ा फायदा मिलेगा। अब सबकी नजर सरकार और दवा कंपनियों पर है कि वे इस अवसर का कैसे उपयोग करते हैं।
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