दिल्ली में गिरता सेक्स रेशियो
राजधानी दिल्ली में लड़कियों के जन्म का अनुपात लगातार घट रहा है। साल 2020 से 2024 तक जारी आंकड़ों को देखें तो यह समस्या और गंभीर होती दिखाई देती है। यह सिर्फ एक सांख्यिकीय तथ्य नहीं बल्कि समाज के लिए गहरी चिंता का विषय है।
2020 से 2024 तक के आंकड़े
दिल्ली सरकार और संबंधित एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले चार वर्षों में लड़कियों के जन्म की संख्या घटती चली गई।
-
2020 – हर 1,000 लड़कों पर लगभग 922 लड़कियां
-
2021 – यह संख्या घटकर 917 लड़कियां
-
2022 – आंकड़ा और नीचे आया, लगभग 913 लड़कियां
-
2023 – गिरावट जारी रही, सिर्फ 909 लड़कियां
-
2024 – स्थिति और चिंताजनक, हर 1,000 लड़कों पर केवल 905 लड़कियां
ये आंकड़े दिखाते हैं कि दिल्ली में चार सालों में करीब 17 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है।
कमी की वजहें
-
लड़का-लड़की में भेदभाव – आज भी कुछ परिवारों में बेटे को प्राथमिकता दी जाती है।
-
फीमेल फॉएटिसाइड (गर्भ में भ्रूण हत्या) – कानून सख्त होने के बावजूद यह प्रथा गुपचुप जारी है।
-
सामाजिक मानसिकता – बेटियों को बोझ मानने की पुरानी सोच।
-
शिक्षा और जागरूकता की कमी – खासकर पिछड़े इलाकों में।
-
स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच – गरीब और वंचित वर्ग में गर्भावस्था के दौरान उचित देखभाल न मिलना।
समाज पर असर
लड़कियों की संख्या में लगातार कमी आने का असर सिर्फ परिवारों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि समाज और देश की जनसांख्यिकी पर भी पड़ेगा।
-
विवाह योग्य महिलाओं की कमी
-
सामाजिक असंतुलन
-
अपराध दर में संभावित वृद्धि
-
महिलाओं पर बढ़ता दबाव और असमानता
समाधान क्या है?
-
कड़े कानून का पालन – भ्रूण हत्या और लिंग चयन को रोकने के लिए सख्ती।
-
जागरूकता अभियान – लोगों की मानसिकता बदलने की जरूरत।
-
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे अभियानों को और मजबूती।
-
महिलाओं की शिक्षा और रोजगार पर विशेष ध्यान।
-
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार ताकि गर्भवती महिलाओं को सही देखभाल मिले।
निष्कर्ष
दिल्ली में लड़कियों के जन्म में आई कमी एक चेतावनी है। यह सिर्फ सरकार का नहीं बल्कि पूरे समाज का दायित्व है कि लड़की और लड़के में भेदभाव खत्म किया जाए। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह समस्या और विकराल रूप ले सकती है।
.jpg)
0 टिप्पणियाँ