सुप्रीम कोर्ट का रुख: राजनीतिक लड़ाई का मंच नहीं है अदालत


 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भाजपा तेलंगाना इकाई की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा चलाने की मांग की गई थी। यह मामला 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए एक भाषण से जुड़ा था। भाजपा ने दावा किया था कि रेड्डी की टिप्पणियां अपमानजनक और भड़काऊ थीं।

मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत राजनीतिक लड़ाई लड़ने का मंच नहीं हो सकती। कोर्ट ने टिप्पणी की, “अगर आप राजनेता हैं तो आपको मोटी चमड़ी रखनी चाहिए।”

याचिका में क्या था आरोप?

भाजपा तेलंगाना इकाई ने मई 2024 में रेड्डी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप था कि उन्होंने अपने भाषण में यह कहा कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो वह आरक्षण समाप्त कर देगी। भाजपा का दावा था कि यह बयान पूरी तरह झूठा और राजनीतिक रूप से गढ़ा गया था, जिससे पार्टी की साख को नुकसान पहुंचा।

शिकायतकर्ता ने कहा कि रेड्डी का भाषण मानहानिकारक था और इससे भाजपा की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है।

निचली अदालत का फैसला

अगस्त 2024 में निचली अदालत ने कहा था कि रेड्डी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत मामला बनता है। यह धारा चुनावों के दौरान विभिन्न वर्गों में दुश्मनी फैलाने से संबंधित है।

हालांकि, रेड्डी ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि राजनीतिक भाषणों को मानहानि का विषय नहीं माना जा सकता और उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई अपराध साबित नहीं होता।

हाईकोर्ट का रुख

तेलंगाना हाईकोर्ट ने निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि शिकायत दर्ज करने वाला व्यक्ति भाजपा की राष्ट्रीय इकाई का अधिकृत प्रतिनिधि नहीं था, इसलिए उसकी शिकायत वैधानिक नहीं मानी जा सकती।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि राजनीतिक भाषण अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर किए जाते हैं और उन्हें मानहानि मानना अपने आप में एक अतिशयोक्ति होगी।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सीजेआई बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने कहा कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। अदालत ने कहा, “हम बार-बार कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट को राजनीतिक जंग का मंच न बनाया जाए। अगर आप राजनीति में हैं तो आपको आलोचनाओं और कटु टिप्पणियों को सहन करने की आदत होनी चाहिए।”

इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि राजनीतिक विवादों के समाधान के लिए अदालत का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

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