नेपाल से ऑस्ट्रेलिया तक: क्यों बढ़ रही है दुनियाभर में सोशल मीडिया पर सख्ती?


 हाल ही में नेपाल सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाने का बड़ा फैसला लिया। इसके बाद देशभर में हिंसक विरोध प्रदर्शन भड़क उठे, जिनमें कई लोगों की जान भी चली गई। यह घटना केवल नेपाल तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में सरकारें सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर ज्यादा सतर्क और सख्त होती जा रही हैं। कहीं सुरक्षा कारणों से तो कहीं समाज पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को देखते हुए प्लेटफॉर्म पर नए नियम लागू किए जा रहे हैं।

नेपाल में प्रतिबंध और विरोध

नेपाल सरकार ने दावा किया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फैल रही अफवाहें, फेक न्यूज और भड़काऊ सामग्री से समाज में अशांति फैल रही है। इन्हीं कारणों से 26 प्लेटफॉर्म पर बैन लगाया गया। हालांकि, इस फैसले के खिलाफ आम लोगों ने सड़कों पर उतरकर जोरदार विरोध किया और हिंसा तक भड़क उठी।

एशियाई देशों में नियंत्रण की बढ़ती प्रवृत्ति

नेपाल से पहले चीन ने अपने देश में फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर पहले ही प्रतिबंध लगाया हुआ है। वहीं पाकिस्तान और श्रीलंका में भी कई बार इंटरनेट शटडाउन और सोशल मीडिया ब्लॉकेज देखने को मिले हैं। इन देशों का कहना है कि इससे आतंकवाद, फेक न्यूज और सांप्रदायिक हिंसा पर अंकुश लगाया जा सकता है।

पश्चिमी देशों में भी सख्ती

सोशल मीडिया पर नियंत्रण केवल एशियाई देशों तक सीमित नहीं है। यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश भी कड़े कदम उठा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में सोशल मीडिया कंपनियों के लिए कानून बनाया है जिसके तहत अगर वे हिंसक या खतरनाक कंटेंट हटाने में नाकाम रहते हैं तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा। इसी तरह यूरोपीय संघ (EU) का Digital Services Act प्लेटफॉर्म्स को पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए बाध्य करता है।

अमेरिका और भारत का रुख

अमेरिका में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन वहां भी डेटा प्राइवेसी और गलत सूचना को लेकर कंपनियों पर दबाव डाला जा रहा है। भारत में सरकार ने आईटी नियमों को सख्त किया है और सोशल मीडिया कंपनियों से ‘ग्रेवांस ऑफिसर’ नियुक्त करने तथा विवादित पोस्टों पर त्वरित कार्रवाई की मांग की है।

क्यों बढ़ रही है सख्ती?

सोशल मीडिया एक ओर लोगों की आवाज़ को ताकत देता है, तो वहीं दूसरी ओर यह अफवाहें फैलाने, नफरत भड़काने और चुनावों को प्रभावित करने का साधन भी बन रहा है। सरकारें चाहती हैं कि इस पर नियंत्रण रखकर समाज में स्थिरता और सुरक्षा बनी रहे। हालांकि, सवाल यह भी है कि कहीं यह सख्ती नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का साधन तो नहीं बन रही।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ