कर्ज का बढ़ता बोझ
उत्तर प्रदेश पर चालू वित्त वर्ष में कुल ऋण नौ लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। फिलहाल प्रदेश के हर नागरिक पर औसतन ₹37,500 का कर्ज है। पिछले पांच वर्षों में राज्य का ऋण 6 लाख करोड़ से बढ़कर 9 लाख करोड़ तक पहुंच गया है।
विकास के साथ बढ़ा उधार
राज्य वित्त आयोग के अनुसार बुनियादी और औद्योगिक विकास में तेजी के कारण उधारी भी बढ़ी है। आयोग का कहना है कि ऋण का आकार उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना उसका सही उपयोग और पुनर्भुगतान की योजना है। यदि पैसा सड़कों, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी परियोजनाओं पर खर्च होता है, तो यह विकास का संकेतक माना जाता है।
राजकोषीय घाटा नियंत्रण में
वित्त वर्ष 2023-24 में यूपी पर कुल ऋण 7.76 लाख करोड़ था, जो 2025-26 तक 9 लाख करोड़ पार करने का अनुमान है। हालांकि, प्रदेश का राजकोषीय घाटा 91,400 करोड़ रुपये (जीएसडीपी का 2.97%) है, जो केंद्र सरकार द्वारा तय 3% की सीमा के भीतर है।
संतुलन की चुनौती
विशेषज्ञ मानते हैं कि अत्यधिक ऋण से ब्याज भुगतान का बोझ बढ़ता है और अर्थव्यवस्था पर दबाव आता है। इसलिए यूपी सरकार के लिए कर्ज और विकास के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
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