चिंताजनक आंकड़े
हालिया अध्ययन के अनुसार, साल 1990 से अब तक टाइप-1 डायबिटीज के मामलों में 42% की बढ़ोतरी हुई है। यह बीमारी मुख्य रूप से बच्चों और किशोरों में देखी जाती है और इसे जुवेनाइल डायबिटीज भी कहा जाता है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यह न केवल जीवनभर का बोझ है, बल्कि रोगियों की आयु 10 साल तक कम कर सकती है।
बीमारी कैसे होती है?
टाइप-1 डायबिटीज में शरीर का इम्यून सिस्टम अग्नाशय की इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं पर हमला कर देता है। इंसुलिन की कमी से ब्लड शुगर बढ़ने लगती है। यह समस्या स्थायी रूप से ठीक नहीं हो सकती, लेकिन इंसुलिन थेरेपी और संतुलित जीवनशैली से नियंत्रित की जा सकती है।
बढ़ते कारण
शोध बताते हैं कि आनुवंशिकी और पर्यावरणीय कारक दोनों जिम्मेदार हैं। बचपन में संक्रमण (मम्प्स, रूबेला), मोटापा, विटामिन-डी की कमी और एंटीबायोटिक का अत्यधिक प्रयोग इसके खतरे को बढ़ा सकते हैं।
स्वास्थ्य जोखिम
टाइप-1 डायबिटीज दिल का दौरा, स्ट्रोक, किडनी और आंखों की बीमारियों का खतरा बढ़ाती है। इंसुलिन रेजिस्टेंस भी इसमें बड़ी भूमिका निभाता है।
समाधान
विशेषज्ञ मानते हैं कि समय पर लक्षण पहचान, जागरूकता और जीवनशैली सुधार से इसके असर को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
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