डायबिटीज टाइप-1 और टाइप-2: क्या अंतर है और कैसे पहचानें खतरा?


 डायबिटीज की बढ़ती चुनौती

डायबिटीज एक गंभीर मेटाबॉलिक बीमारी है, जिसमें शरीर ब्लड में शुगर के स्तर को नियंत्रित नहीं कर पाता। इंसुलिन हार्मोन की कमी या कार्यक्षमता में बाधा इस बीमारी की मुख्य वजह होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल 15 लाख से अधिक मौतें डायबिटीज से जुड़ी बीमारियों के कारण होती हैं। भारत में 2024 तक 10 करोड़ से ज्यादा लोग इससे प्रभावित थे, जिनमें 90% को टाइप-2 डायबिटीज थी।

टाइप-2 डायबिटीज: जीवनशैली से जुड़ा खतरा
टाइप-2 डायबिटीज सबसे आम प्रकार है। इसमें या तो शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनाता या शरीर उसे पहचान नहीं पाता। इसे इंसुलिन रेजिस्टेंस कहते हैं। यह आमतौर पर 40 वर्ष से ऊपर की उम्र में होता है, लेकिन अब युवाओं में भी देखा जा रहा है। सही खानपान, व्यायाम और दवाइयों से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

टाइप-1 डायबिटीज: ऑटोइम्यून रोग
टाइप-1 डायबिटीज में शरीर का इम्यून सिस्टम खुद की बीटा कोशिकाओं पर हमला कर देता है जिससे इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। यह बच्चों और किशोरों में अधिक होती है। मरीज को जीवनभर इंसुलिन इंजेक्शन की जरूरत होती है।

लक्षण और सलाह
लक्षणों में बार-बार पेशाब, अधिक प्यास, वजन कम होना, थकान, धुंधली नजर और घावों का देर से भरना शामिल हैं। समय रहते जांच और इलाज बेहद जरूरी है

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