क्या मंदिर में जूते पहनकर जाना पाप है, क्या सच में भगवान नाराज़ हो जाते हैं. या इसके पीछे है कोई वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण? चलिए, आज जानते हैं सच-
सनातन धर्म में पूजा को बेहद पवित्र कार्य माना गया है. जूते-चप्पल रोज़ की गंदगी से भरे होते हैं– कीचड़, धूल, बैक्टीरिया और भी बहुत कुछ.
ऐसे में मंदिर जैसी शुद्ध जगह पर उन्हें पहनकर जाना, क्या उचित है?
मंदिरों में अक्सर हम ध्यान लगाते हैं, शांत बैठते हैं. जूते पहनकर वहां जाना सिर्फ गंदगी लाना नहीं है, बल्कि उस अहंकार और भौतिकता को साथ ले जाना है, जिसे छोड़कर हमें प्रभु के चरणों में आना चाहिए.
भारतीय परंपरा में नंगे पांव मंदिर जाना एक आत्मसमर्पण का भाव है. यह श्रद्धा और नम्रता का प्रतीक है. यह हमारे शरीर को ज़मीन से जोड़ता है और ध्यान को गहरा करता है.
तो अगली बार जब आप मंदिर जाएं, तो सिर्फ जूते ही नहीं, अपने अहंकार और बाहरी दुनिया की सारी गंदगी भी बाहर छोड़ दें, क्योंकि मंदिर सिर्फ ईश्वर से मिलने की जगह नहीं, खुद से जुड़ने की शुरुआत भी है.
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