कांवड़ यात्रा की शुरुआत और महत्व
11 जुलाई 2025 से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा सिर्फ तीर्थयात्रा नहीं, बल्कि भक्ति, संयम और आत्मशुद्धि की कठिन साधना है। इसमें भक्त पवित्र गंगा जल लाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। इसका वर्णन शिवपुराण, स्कंद पुराण और महाभारत जैसे शास्त्रों में मिलता है।
शास्त्रीय नियम और रहस्य
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शिवपुराण कहता है कि श्रावण मास में गंगा जल लेकर शिवालय जाने वाले भक्त भवबंधन से मुक्त हो जाते हैं।
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स्कंद पुराण में कहा गया है कि यात्री को शारीरिक, मानसिक और आहार की शुद्धता रखनी चाहिए।
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महाभारत में बताया गया है कि इस यात्रा में किया गया परिश्रम तप के समान है।
पालन करने योग्य नियम
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कांवड़ को धरती पर न रखें।
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मांस, शराब, तंबाकू से पूरी तरह बचें।
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दाएं हाथ से शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
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किसी और की कांवड़ को न छुएं।
यात्रा का सही उद्देश्य
यह यात्रा केवल बाहरी प्रदर्शन नहीं, बल्कि आत्मिक परिवर्तन का अवसर है। जो पूर्ण निष्ठा, शुद्धता और नियम से यात्रा करता है, वह शिव कृपा का पात्र बनता है।
यही शिव है... यही सत्य है
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