चुनाव न लड़ने का पत्र नड्डा को थमाकर कानपुर लौटे पचौरी

-तो 75 के फेर में फंस ही गए सांसद सत्यदेव पचौरी
महीने भर से ज्यादा समय से डेरा डाले रहे दिल्ली में

कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र की नौ सीटों पर सांसद रिपीट
फिर पचौरी का नाम घोषित न करने पीछे बढ़ती उम्र
75 की हेमामालिनी को टिकट फिर इन्हें ठेंगा क्यों
कानपुर। 2019 में खासे अंतराल से चुनाव जीते कांग्रेस के पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल से चुनाव जीते भाजपा सांसद सत्यदेव पचौरी ने टिकट की दावेदारी वापस ले ली। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे पत्र में उन्होंने सीधा-सपाट कहा कि वह कानपुर संसदीय क्षेत्र से 2024 का चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं लिहाजा उनके नाम पर विचार न किया जाए। पचौरी ने यह भी लिखा कि वह पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता हैं और पार्टी के द्वारा दिए गए सभी दायित्वों का निर्वहन करते रहेंगे। उनके इस फैसले से भाजपा में तरह-तरह की अटकलों का बाजार गरम हो गया है। यही नहीं अचानक लिए गए इस फैसले से उनके समर्थकों में निराशा है। सही कारण बताने से वह भी कन्नी काट रहे हैं। कानपुर से किसी अन्य ब्राह्मण के मैदान में आने की संभावना है तो दूसरी तरफ पचौरी की पुत्री शिक्षाविद नीतू सिंह का नाम भी चर्चा में है। संभावित सूची में महिलाओं में उनका और पुरुष में रमेश अवस्थी के नाम की खासी चर्चा है।

नड्डा ने कहा, आप पत्र भेज दीजिए
सूत्र बताते हैं कि पचौरी को बढ़ती उम्र के कारण नेतृत्व से रविवार को ही संकेत दे दिया गया था। जब उन्होंने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से चुनाव न लड़ने की इच्छा जतायी तो नड्डा ने उनसे कहा कि वह उन्हें (नड्डा) संबोधित पत्र लिखकर भेज दें। चुनाव न लड़ने की इच्छा व्यक्त करते हुए नड्डा को पत्र भेजकर वह कानपुर लौट आए। यह पत्र उन्होंने मीडिया को भी जारी किया है। दरअसल भाजपा प्रत्याशियों की जब पहली सूची जारी की गयी थी तो कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र की दस में नौ सीटों पर वही प्रत्याशी घोषित कर दिए गए थे जो 2019 में लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे थे। सिर्फ कानपुर सीट पर प्रत्याशी की घोषणा रोककर पार्टी नेतृत्व ने साफ संकेत दे दिया था कि उनके नाम पर विचार अब शायद ही किया जाए। लेकिन पचौरी का रिच बायोडाटा और संसदीय क्षेत्र में विकास कार्य आदि की फेहरिश्त और तो और नमो एप के साथ ही विभिन्न सर्वे में नाम होने के कारण उन्हें उम्मीद बंध गयी थी।
महाना की दिल्ली दौड़ से बेचैनी बढ़ी
विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना की दिल्ली दौड़ भी परेशानी का सबब रही। कानपुर में भाजपा में महाना और पचौरी गुट की राजनीति जगजाहिर है। 2004 में पचौरी की कांग्रेस से साढ़े चार हजार से हार और 2009 में पचौरी की टिकट कटवाकर खुद चुनाव में कूदे सतीश महाना की 18 हजार से हार के पीछे भाजपा की गुटबाजी भी कारण बतायी जाती है। बैठकों के दौरान महाना का दिल्ली जाना चर्चा का विषय बन जाता रहा।
हेमामालिनी के टिकट के बाद बंधी उम्मीद
पहली सूची में जब मथुरा की सांसद हेमामालिनी का टिकट घोषित हुआ तो अंदाजा लगाया जाने लगा कि शायद उम्र की सीमा में ढील दे दी गयी है। हालांकि बाते हैं कि पार्टी का भी 75 पार को न लड़ाने का कोई निर्णय नहीं था। संसदीय बोर्ड की बैठकों में यह बात कभी चर्चा में ही नहीं आयी। यह पचौरी की उम्मीद बांधे रखने का एक कारण था। कहा जाता है कि पार्टी के कुछ दिग्गज नेता इस फैसले से खुश नहीं थे।
भाजपा में 56 सांसद बुजुर्ग हैं
लोकसभा में बीजेपी के 56 ऐसे सांसद ऐसे हैं जो इस उम्र को पार कर चुके है. इसमें राजनाथ सिंह, गिरिराज सिंह, सत्यदेव पचौरी, राजेंद्र अग्रवाल, रविशंकर प्रसाद जैसे दिग्गज शामिल हैं। बूढ़े सांसदों के क्षेत्र से विकल्प के तौर पर प्रत्याशी की तलाश शुरू हो गयी थी। पार्टी का यह महीन काम शायद कोई भांप नहीं पाया।

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