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जातीय जनगणना का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा ,HC के आदेश को चुनौती, की गई यह मांग

याचिका में पटना हाईकोर्ट के सर्वे जारी करने के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई है. दरअसल, अखिलेश कुमार नामक एक याचिकाकर्ता ने पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर कब सुनवाई करेगी, इसकी कोई जानकारी सामने नहीं आई है. हालांकि, बिहार सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही कैवियट अर्जी दाखिल कर रखी है

News Jungal Desk:बिहार में भले ही पटना हाईकोर्ट \के फैसले से जातीय जनगणना का रास्ता साफ हो गया हो, मगर अब इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है । नीतीश सरकार के हक में पटना हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद जाति आधारित जनगणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है । और याचिका में पटना हाईकोर्ट के जातीय जनगणना वाले आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया है ।

याचिका में पटना हाईकोर्ट के सर्वे जारी करने के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई है । और दरअसल, अखिलेश कुमार नामक एक याचिकाकर्ता ने पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है । और सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर कब सुनवाई करेगी । और इसकी कोई जानकारी सामने नहीं आई है । हालांकि, बिहार सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही कैवियट अर्जी दाखिल कर दिया है ।

पटना हाईकोर्ट ने किया था रास्ता साफ
इससे पहले बिहार में जाति आधारित जनगणना को रोकने के लिए दाखिल याचिका को पटना हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था । और कोर्ट के इस फैसले के साथ ही नीतीश सरकार का प्रदेश में जातिगत जनगणना करवाने का रास्ता साफ हो गया था । और बता दें कि याचिकाकर्ताओं ने जातिगत जनगणना रोकने की अपील करी थी । लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए बिहार सरकार को बड़ी राहत दी थी। आप को  बता दें कि जाति आधारित जनगणना प्रक्रिया पर रोक लगाने के लिए पांच अलग-अलग याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की गई थीं, जिस पर कोर्ट में कई दिनों तक सुनवाई चली थी ।

याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि ये केंद्र का अधिकार है
बता दें कि इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने जातीय जनगणना पर सवाल उठाते हुए उसे तत्काल रोकने के लिए दलील दी थी । और याचिकाकर्ताओं का कहना था कि जनगणना करवाने का अधिकार केंद्र सरकार का है । और अगर ऐसा बिहार सरकार करती है तो व्यक्ति की निजता के अधिकार का हनन होगा । और इस पर बिहार सरकार ने अपना पक्ष रखा था ।  बिहार सरकार की ओर से कहा गया था कि यह जातिगत जनगणना नहीं बल्कि सर्वेक्षण होगा. सर्वेक्षण में जो 17 सवाल पूछे जा रहे हैं इससे किसी की निजता के अधिकार का हनन नहीं होता है. कोर्ट में बिहार सरकार ने अपना पक्ष मजबूती से रखा और कोर्ट ने भी बिहार सरकार को राहत देते हुए जातिगत जनगणना के मामले में बड़ी राहत दी थी।

बिहार में क्‍यों की जा रही जातीय जनगणना
बिहार में ज्‍यादातर राजनीतिक दल जातीय जनगणना की लंबे समय से मांग कर रहे थे. उनका कहना है कि जातीय जनगणना होने से राज्‍य में रहने वाले दलित और पिछड़ा वर्ग के लोगों की सही संख्या पता चल जाएगी. इससे उन्‍हें आगे बढ़ाने के लिए विशेष योजनाएं बनाने में आसानी होगी. अगर सही जातीय जनसंख्या का पता होगा तो राज्य में उनके मुताबिक प्रभावी योजनाएं बनाई जाएंगी. बिहार विधानसभा और विधान परिषद में 18 फरवरी 2019 तथा 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना कराने से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया गया. इस प्रस्‍ताव को बीजेपी, राजद, जदयू समेत सभी दलों ने समर्थन दे दिया.

शुरू हो चुकी है जातिगत जनगणना की प्रक्रिया
बिहार में भी 7 जनवरी 2023 से जातिगत जनगणना की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. इसके तहत विभागीय कर्मचारी डोर टू डोर जाकर जनगणना कर रहे हैं. जनगणना में कर्मचारियों के साथ शिक्षक और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को भी लगाया गया है. जनगणना के तहत पहले चरण में मकानों पर नंबर डाले गए. वहीं, दूसरे चरण में लोगों से उनकी जाति पूछकर गणना की जा रही है. बता दें कि लंबे समय से बिहार समेत देश के कई राज्यों में जातिगत जनगणना की मांग उठ रही थी. साल 2011 में हुई जनगणना के बाद जातीय आधार पर रिपोर्ट बनाई गई थी, लेकिन उसे जारी नहीं किया गया. बिहार से पहले राजस्थान और कर्नाटक में भी जातीय जनगणना हो चुकी है ।

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