न्यूज जगंल डेस्क: कानपुर आज के दिन विधिवत धनवंतरि का पूजन होता है।गाँव में धनतेरस तब केवल चम्मच, थाली खरीदने का दिन हुआ करता था। बताते हैं कि शरद पूर्णिमा के बाद ज्वार कम होने पर समुद्र मंथन प्रारंभ हुआ और आज के दिन अमृतकलश लिए धन्वंतरि प्रकट हुए रोगों से मुक्ति देने। एक दिन बाद हलाहल निकला और दीपावली को लक्ष्मीजी का प्राकट्य हुआ।



दीपावली के ये तीन दिन जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं आरोग्य एवं समृद्धि के लिए । इसे आप पुरातन संस्कार कह सकते हैं। हिंदी के महाविद्वान आचार्य लक्ष्मीकांत पांडेय के अनुसार वह आज भी धनतेरस को धन से नहीं जोड़ पाते। बाजार चाहे जो कहे उनके लिए धन्वंतरि जयंती है ।लोकसेवा के लिए उत्पन्न एक महापुरुष जिसका चिकित्सा में आदि स्थान है धन का देवता बाजार ने बना दिया ।हमारी कृषि सभ्यता के प्रतीक ये पर्व अब बाजार देवता के अधीन हैं । पौराणिक संदर्भ बहुत कुछ कहते हैं उन मिथकों को तोड़े बिना हम ऐसे ही बदलते रहेंगे ।
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समुद्र मंथन केवल समुद्र का मंथन नहीं था जागतिक रहस्यों के अनुसंधान की एक महत्वपूर्ण योजना थी और चौदह रत्न जीवन की विभिन्न ऐषणाओं की पूर्ति के प्रतीक ।अमरत्व और लक्ष्मी मानव की सर्वश्रेष्ठ कामनाएँ । सारे रत्न तो.श्रीमंतों के होते हैं लोक को हलाहल और वारुणी । विभाजन की इसी भेदमूलक नीति का परिणाम देवासुर संग्राम है ।यह विभाजन आज भी है ।लोक वारुणि के मद में श्रीमंतों का गुणगान करता विष पीता है ।धनवंतरि पहले देवता हैं जिन्होंने लोक की चिंता की ।उनमें लोक की पीड़ा थी ।