न्यूज जगंल डेस्क: कानपुर बाबरी विध्वंस से लेकर सीएए और एनआरसी के दंगों का दंश कानपुर झेल चुका है। दंगों के दिन, साल, महीने जरूर बदले, लेकिन चौराहा यतीमखाना ही रहा। कानपुर का ये चौराहा अतिसंवेदनशील है। बीते 4 दंगों पर गौर करें तो यतीमखाना हॉट-स्पॉट बन चुका है। मंगलवार को भी जुलूस-ए-मोहम्मदी को लेकर माहौल बिगाड़ने की कोशिश इसी चौराहा से की गई। लेकिन पुलिस और प्रशासन की वक्त रहते मुस्तैदी के चलते माहौल बिगड़ने से रोक लिया गया।



सीएए-एनआरसी बवाल (2020)
अक्टूबर-2020 में हुए सीएए और एनआरसी कानून वापसी को लेकर सुनियोजित तरीके से दंगे भड़काए गए। विरोध-प्रदर्शन पहले से प्रस्तावित था। लेकिन एलआईयू भी यहां माहौल बिगाड़ने की सूचना को भांप नहीं पाई। एकाएक तंग गलियों से लोग निकले। यतीमखाना चौराहा पर हजारों की संख्या में हुजूम एकत्रित हो गया। उपद्रवियों के आगे पुलिस और प्रशासन को पीछे हटना पड़ा। इस दंगे में सद्भाव को कायम करने के लिए बनाई गई चौकी भी फूंक दी गई।
धार्मिक पुस्तक जलाने पर दंगा (2001)
16 मार्च 2001 को धार्मिक पुस्तक जलाने की अफवाह के बाद कानपुर में दंगे भड़क गए थे। इसकी शुरुआत भी यतीमखाना चौराहा से हुई थी। नयी सड़क स्थित सुनहरी मस्जिद के पास से गोलियां चलाई गईं थीं, जिसमें तत्कालीन एडीएम फाइनेंस चंद्र प्रकाश पाठक की गोली लगने से शहीद हो गए थे। वे दंगाइयों से सीधे मोर्चा ले रहे थे। यतीमखाना चौराहा पर ही हजारों की संख्या में लोग प्रदर्शन कर रहे थे। अचानक भीड़ उग्र हुई और नवीन मार्केट, परेड, मुर्गा मार्केट व सोमदत्त प्लाजा में पथराव शुरू हो गया था।
खोली गई थी सद्भावना चौकी
2001 के दंगों के बाद ही यतीमखाना चौराहा के पास सद्भावना पुलिस चौकी की स्थापना की गई थी। इस पुलिस चौकी दादा मियां चौराहा तक दायरा तय किया गया। लेकिन सीएए और एनआरसी के दंगों में इस पुलिस चौकी को ही आग के हवाले कर दिया गया था।
बाबरी विध्वंस भी देखा (1992)
बाबरी विध्वंस के बाद जहां पूरे प्रदेश के साथ देश में माहौल बिगड़ा। वहीं कानपुर में सबसे पहले तकिया पार्क और यतीमखाना चौराहा पर बवाल शुरू हुआ। इसके बाद एक-एक कर पूरे शहर में दंगे भड़क गए थे। पुराना कानपुर होने के नाते यहां की तंग गलियों में हजारों परिवार रहते हैं। चुटकियों में हजारों की संख्या में भीड़ सड़कों पर उतर आती है। मंगलवार को भी रोक के बावजूद भीड़ सड़कों पर उतरी और जुलूस निकाला।
सारे इंतजाम धरे के धरे रह जाते
चौराहा बेहद अंतिसंवेदनशील श्रेणी में आता है। यहां 24 घंटे पुलिस की तैनाती रहती है। यहां निगरानी के लिए हाईटेक सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए, जो दिन-रात मॉनिटरिंग करते हैं। लेकिन बावजूद इसके हर बार पुलिस और प्रशासन भीड़ के मक्सद के आगे पीछे हट जाता है।
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हाईटेक इंतजाम दंगे नहीं रोकते
कानपुर में तैनात रहे रिटायर्ड पुलिस अधिकारी राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि एक वर्ग विशेष से बाहुल्य क्षेत्र में पुलिसिंग वहां के लोगों को अपने साथ रखकर करनी पड़ती है। कोई भी बवाल होता है तो धर्मगुरु ही भीड़ को समझाने के लिए आगे आती है। हाईटेक इंतजामों से दंगाइयों को चिन्हित कर पकड़ा जा सकता है। लेकिन दंगा होने और न होने को लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता है।