अनूप शुक्ला की रिपोर्ट जिस प्रकार विश्व बाजार वैश्वी करण हमारे स्थानीय बाजारों को निगल रहा है — इससे हमे अपने ही शहर व कस्बे की बनी प्रत्येक वस्तु घटिया व कमतर नजर आती है। ठीक उसी प्रकार हम अपनी जमीन से उखड़ रहे है और हमारा अपने गाँव, नगर व जिले से प्रेम नही रहता है । हम देश प्रेम तो प्रदर्शित करते है लेकिन नगर व जिले के प्रति प्रेम का भाव नही रखते है ।



यूरोप व अन्य पश्चिमी देशों में छोटे-छोटे कस्बों , स्थानों व धार्मिक स्थलों का इतिहास तैयार किया गया है और उसे नई पीढ़ी को पढ़ाया व बताया जाता है । लेकिन हमारे यहाँ पर स्थानीय इतिहास को जानने व समझने मे लोग रुचि नही लेते जिससे भावी पीढ़ी को भी इतिहासवोध नही होता है।
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कानपुर का इतिहास जनपद की स्थापना व १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से ही नही हमें अपनी स्थानीय बोली भाषा त्योहार व मेलों की संस्कृति को भी जानने से है । मैथा कानपुर के गौरव विश्वप्रसिद्ध संत स्वामी भास्करानन्द सरस्वती , देव समाज जे प्रवर्तक अकबरपुर के स्वामी सत्यानन्द अग्निहोत्री/भगवान देवात्मा को अब कितने लोग जानते है ।