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क्या वाकई कोविड-19 का युवाओं की मानसिक सेहत पर पड़ा है असर

न्यूज जगंल डेस्क: कानपुर कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी के कारण कनाडा के युवा भी अन्य लोगों की तरह अपने जीवन में कई परेशानियों का सामना कर रहे हैं। स्कूलों का मौजूदा शैक्षणिक वर्ष हमारी उम्मीद के अनुसार शुरू नहीं हुआ, कोविड-19 के मामलों की संख्या अस्थिर है, स्कूलों में छात्रों की सुरक्षा एवं डेल्टा स्वरूप को लेकर अनिश्चितता है।

सुर्खियों से पता चलता है कि पृथक-वास के कारण युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो गई हैं और वैश्विक महामारी के कारण बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है, लेकिन सुर्खियों से जैसा लग रहा है, क्या युवाओं पर उतना ही नकारात्मक असर पड़ा है? क्या इस संबंध में हमारे पास कोई पुराने या मौजूदा आंकड़े हैं, जिनके आधार पर इस प्रकार की घोषणा की जा सके? 

पुराने एवं मौजूदा आंकड़े
कनाडा के युवाओं के बारे में वैश्विक महामारी से पहले के समय के विश्वसनीय आंकड़ों का पता लगाना मुश्किल है। हम दशकों तक, 1987 ओंटारियो बाल स्वास्थ्य अध्ययन जैसे अध्ययनों और इसके निष्कर्षों पर निर्भर रहे हैं कि देश में हर पांच युवाओं में एक युवा मानसिक विकार से पीड़ित है। उस समय चार साल से 16 साल के 18.1 प्रतिशत बच्चे एक या अधिक विकारों से पीड़ित थे। 

इसके 30 साल बाद भी, यानी 2014 ओंटारियो बाल स्वास्थ्य अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार भी भावनात्मक एवं व्यवहार संबंधी विकार से जुड़े आंकड़े लगभग समान हैं। अभिभावकों और बच्चों द्वारा स्वयं दी गई जानकारी के अनुसार 12 से 17 वर्ष आयुवर्ग के क्रमश: 18.2 प्रतिशत और 21.8 प्रतिशत किशोर ”किसी न किसी विकार” से पीड़ित हैं। इन आंकड़ों के अनुसार मानसिक समस्याओं से पीड़ित कनाडाई युवाओं की संख्या में कोई नाटकीय वृद्धि नहीं हुई है। 

मुझे गलत मत समझिए, मैं भी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे युवाओं की संख्या और सेवाओं तक पहुंच के अभाव को लेकर चिंतित हूं, लेकिन 25 से अधिक वर्षों से एक पंजीकृत मनोवैज्ञानिक और अनुसंधानकर्ता के रूप में मुझे हमेशा से यही लगता है कि हर पांच में से एक आंकड़ा मानसिक विकारों से पीड़ित युवाओं की दर में निहित असमानताओं को पकड़ने में विफल रहता है। 

कोविड-19 के असर का पता लगाना
कोविड-19 का बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़े असर के बारे में पता लगाने के लिए कई अध्ययन किए गए हैं, लेकिन बहुत कम अध्ययनों में कनाडाई नमूने इस्तेमाल किए गए हैं, कई पहले से प्रकाशित हैं और कई में कोविड-19 से पहले और उसके दौरान दीर्घकालीन तुलनात्मक नमूनों का उपयोग नहीं किया गया। लेकिन, क्यूबेक और ओंटारियो में किशोरों पर किया गया एक अध्ययन और क्यूबेक में वयस्कों पर किया गया एक अध्ययन इन अध्ययनों का अपवाद हैं। इन दोनों अध्ययनों में पाया गया है कि कोविड-19 के दौरान और उससे पहले चिंता एवं अवसाद जैसे मानसिक विकारों में मामूली वृद्धि हुई है।

हमारे अध्ययन में पाया गया है कि 15 से 18 वर्ष तक के आयुवर्ग के किशोरों में 12 वर्ष से 15 वर्ष के किशोरों की तुलना में अधिक तनाव था, लड़कियों पर लड़कों की तुलना में अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और जिन लोगों के परिवार की आय प्रभावित हुई है या जिन्हें पहले से कोई मनोवैज्ञानिक समस्या थी, उन पर भी महामारी के कारण अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

सामान्य प्रतिक्रिया बनाम मानसिक स्वास्थ्य संबंधी संकट

कुछ युवाओं ने अपने सामाजिक, व्यक्तिगत और शैक्षणिक जीवन पर महामारी के कारण पड़े नकारात्मक प्रभावों की स्पष्ट रूप से जानकारी दी है, लेकिन हमारे द्वारा मापे गए सभी क्षेत्रों में, हमारे नमूने में हर 10 में से सात से अधिक युवा कोविड-19 के संबंध में जो प्रतिक्रिया दे रहे हैं, वह विकास और मनोवैज्ञानिक रूप से सामान्य हैं। अन्य शब्दों में कहें, तो चिंता पैदा करने वाली सुर्खियों के विपरीत अधिकतर युवा इस महामारी से बेहतर तरीके से निपट रहे हैं।

ये भी देखे: कानपुर में आए दिन होने वाला जलसंकट खत्म होने का नाम नही ले रहा

लेकिन शेष 30 फीसदी युवाओं का क्या? उन्होंने अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जो लक्षण स्वयं बताए हैं, क्या उसका अर्थ है कि हमारे समक्ष युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी महामारी की समस्या है? कुछ हद तक इसका जवाब उस भाषा से मिल सकता है, जो हम मानसिक विकारों (मानसिक स्वास्थ्य साक्षरता का हिस्सा) को समझने के लिए इस्तेमाल करते हैं। सीधे शब्दों में कहें, तो उदास या अकेला महसूस करना अवसाद नहीं है; चिंता या घबराहट की भावना चिंता संबंधी कोई बीमारी नहीं है। हमारे समक्ष चुनौती है कि हम उनकी उदासी और चिंता को स्वीकार करें और दृढ़ता एवं संकल्प की उनकी ताकत को बल दें। 

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