न्यूज जगंल डेस्क: कानपुर गुरुनानक देव कहते हैं कि बाहर से स्वच्छ हो जाने से आंतरिक शुद्धता नहीं होती है। बाहर से चुप हो जाने पर मौन उपलब्ध नहीं होता। आंतरिक शुद्धता, और शांति ईश्वर के सुमिरन से, उसके बताए रास्ते पर चल कर मिलती है



गुरु नानकदेव जी महाराज कहते हैं कि गुरु की कृपा से अपना आप समझ आता है। एक बात तय है कि अभी पता ही नहीं है कि यह अपना आप क्या है? ‘कौन हूं मैं’, जिसने यह जान लिया, वह परमेश्वर को भी जानता है और उसकी सब तृष्णा भी बुझ जाती है। जो साधु संगत में बैठकर हरि का यश गाते हैं, वे सब रोगों से मुक्त हो जाते हैं।
गुरुदेव कहते हैं कि जो हर रोज कीर्तन करे, ऐसे व्यक्ति का जीवन गृहस्थी में रहकर भी साधु जैसा हो जाता है। यहां ‘कीर्तन’ का अर्थ ढोलकी, हारमोनियम, मंजीरे बजाकर कीर्तन करना नहीं है। मन में ही एक धुन चलती रहती है। जैसे दिल की धड़कन अपने आप चलती रहती है, इसी तरह तेरे अंदर सुमिरन चलता रहे, चलता रहे। बोले तो हरि कथा, हरि का यश बोले, अन्यथा मौन रहे। मन में हमेशा एक धुन-सी चलती रहे और काम भी चलता रहे। बोल-बोलकर कीर्तन करने की जरूरत नहीं। मन में कीर्तन चले तो स्मरण के रूप में, याद के रूप में।
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गुरुदेव कहते हैं कि हमारे मन की आशा सिर्फ परमात्मा पर ही टिकी हो, किसी और पर नहीं। ऐसे मनुष्य का मृत्यु का भय, बंधन सब टूट जाता है। मन में परमात्मा की भूख हो, तो उसको दुनिया का कोई दुख रहता ही नहीं। देखिए, परमात्मा सर्वत्र उपलब्ध है। ऐसा नहीं कि किसी संत-महात्मा ने भगवान की प्राप्ति कर ली, अब बाकियों के लिए भगवान बचा ही नहीं, बात खत्म! यह सम्भव नहीं है। परमात्मा सीमित नहीं है। परमात्मा अनंत है, व्यापक है। करोड़ों जीव परमात्मा की प्राप्ति कर लें, तो भी बाकियों के लिए परमात्मा है, वह खत्म नहीं हो जाता। जैसे सूरज की रोशनी एक समय में सारे लोग ले सकते हैं। अरबों-खरबों कितने भी लोग हों, सूरज को कोई फर्क नहीं। उसकी रोशनी वैसी ही चमचमाती रहती है, उतनी ही तेजस्वी होती है।