न्यूज जगंल डेस्क: कानपुर कानपुर में शनिवार को प्रदेश का पहला जीका वायरस मरीज मिला था। एयरफोर्स कर्मी एमएम अली (57) में पुष्टि के बाद स्वास्थ्य विभाग ने क्षेत्र में बड़ा सर्च अभियान शुरू किया है। 400 से ज्यादा घरों में संचारी रोग नियंत्रण टीमों को लगाया गया है।



CMO ने बताया अहिरवां एरिया के एक किलोमीटर के अंदर 1300 लोग रडार पर लिए गया हैं। साथ ही पूरे एरिया को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया गया गया है। फिलहाल, मरीज के इलाज के लिए रविवार को दिल्ली एम्स से डॉक्टरों की टीम सेवन एयर फोर्स हॉस्पिटल पहुंच चुकी है।
संपर्क में आने वालों की हो रही जांच
दिल्ली से विशेषज्ञों की टीम कानपुर पहुंच गई है। संपर्क में आने वाले 112 लोगों के सैंपल अब तक लिए गए है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मरीज वायुसेना स्टेशन का कर्मचारी है, इस समय उन्हें 7 एयरफोर्स अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
लक्षणों के आधार पर अस्पताल प्रबंधन ने उसका सैंपल जांच के लिए पुणे भेजा। एमएम अली परिजनों ने बताया, उनको कई दिनों से बुखार आ रहा था। पास में ही एक डॉक्टर को दिखाया था लेकिन, बुखार उतरा नहीं।
जीका वायरस के संक्रमण के लक्षण
शरीर में जीका वायरस के प्रवेश करने के तीन से 14 दिन के भीतर जीका वायरस के संक्रमण के लक्षण दिखने लगते हैं। जो तीन से सात दिन तक रहते हैं। अगर किसी व्यक्ति को बुखार है, जो लगातार है।
दवाएं खाने में न उतरे, साथ ही डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया व टाइफाइड की जांच में पुष्टि न हो। व्यक्ति विदेश यात्रा व जीका प्रभावित क्षेत्र से लौटा हो। ऐसे में जीका वायरस की जांच करानी चाहिए।
महिलाओं व गर्भवती के लिए खतरनाक
मेडिकल कॉलेज प्राचार्य प्रो संजय काला ने बताया कि जीका वायरस भी मच्छर के काटने से फैलता है। जीका वायरस का संवाहक एडीज एजेप्टी नामक मच्छर होता है। इसका मच्छर भी दिन के समय ही काटता है। यह वायरस गर्भवती व महिलाओं के लिए अधिक घातक और खतरनाक होता है।
वायरस का संक्रमण होने पर वायरस गर्भ में पल रहे बच्चे के ब्रेन पर सीधे अटैक करता है, जिससे बच्चे के सिर का आकार छोटा हो जाता है। बच्चे में विकृति भी आ सकती है। इस मच्छर की वजह से ही डेंगू और चिकुनगुनिया भी फैलता है। आमतौर पर यह वायरस देश के दक्षिण हिस्से के तटीय क्षेत्र में पाया जाता है। मुख्यत: जीका वायरस दक्षिण अफ्रीका के देशों और मध्य अमेरिका में अधिक फैलता है।
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इस तरह करता है हमला
गुलियन बेरी सिंड्रोम पैरों में झुनझुनाहट से समस्या शुरू होती है, धीरे-धीरे व्यक्ति लकवाग्रस्त हो जाता है। उसके बाद दिल की धड़कन असमान्य, चेहरे की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं, जिससे चेहरे के भाव खत्म होने लगते हैं।
व्यक्ति को खाने-पीने व निगलने में दिक्कत होती है। फिर झनझनाहट व शरीर में जलन, पेशाब न उतरन और उठने-बैठने व बोलने में समस्या होने के साथ सांस फूलने लगती है।