सीमा तिवारी: कानपुर छठ पूजा संपन्न होने के ठीक दूसरे दिन यानी 12 नवंबर को आंवला नवमी मनायी जाएगी। कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को यह त्योहार मनाया जाता है। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा परिक्रमा की जाती है। इस त्योहार को आरोग्य नवमी, अक्षय नवमी, कुष्मांड नवमी के नाम से भी जाना जाता है। शहर के हिंदू परिवार आंवला नवमी को धार्मिक परंपरा के अनुसार मनाते हैं।
सामूहिक रूप से आंवला नवमी मनाने की तैयारी कर रहे लोगों का कहना है कि वह अपने परिजनों और मित्र परिवारीजनों के साथ आंवला नवमी मनाएगी। यहां पर आंवला के वृक्ष की पूजा की जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार आंवले के पेड़ का पूजन परिवार सहित करने वालों को आरोग्य जीवन और पारिवारिक खुशहाली मिलती है। मान्यता के अनुसार, इस दिन किया गया तप, जप, दान इत्यादि व्यक्ति को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त करता है। आंवला नवमी की पूजा के दौरान इससे जुड़ी कथा को जरूर पढ़ना या सुनना चाहिए। तभी इस पूजा का अक्षय फल भक्तों को प्राप्त होता है।



यह भी कहा जाता है कि अगर इस दिन कोई भी शुभ काम किया जाए तो उससे अक्षय फल की प्राप्ति होती है। पूजा के दौरान आंवला नवमी की कथा भी सुनी जाती है। आंवला नवमी की कहानी व्रत के समय कही और सुनी जाती है। किसी भी व्रत को रखने के दौरान हमें उस व्रत की कहानी और उसके महत्व का ज्ञान होना जरुरी होता है। तो आइए आज आप भी जानें अक्षय नवमी की व्रत कथा के बारे में।
हिंदू समाज में आंवला नवमी पर ऐसी मान्यताएं हैं कि इस दिन जो भी शुभ कार्य किया जाता है उसमें हमेशा बरकत होती है। कभी भी कोई कमी नहीं होती। इसलिए इस दिन की पूजा से अक्षय फल का वरदान मिलता है। वहीं, दूसरा धार्मिक महत्व भगवान कृष्ण से जुड़ा है। द्वापर युग की शुरुआत भी आज ही हुई थी। वृंदावन की परिक्रमा की शुरुआत भी इसी दिन से होती है। अबकी 12 नवंबर यानी शुक्रवार को आंवला नवमी पड़ेगी। इस दिन पूजा का मुहूर्त शुक्रवार की सुबह 6 बजकर 50 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक रहेगा।
जानिए पूजा की विधिः आंवला नवमी के दिन स्नानादि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें पूजन की सामग्री के साथ आंवला के पेड़ के पास जाएं। आंवला के जड़ के पास साफ सफाई कर जल और कच्चा दूध अर्पित करें। जो भी पूजन सामग्री हो उससे आंवला के वृक्ष की पूजा करें। आंवला के वृक्ष के तने पर कच्चा सूत या मौली लपेंटे मौली लपटने के क्रम में वृक्ष की 8 परिक्रमा करें, कई स्थानों पर 108 परिक्रमा करने का भी विधान है। योग्य पंडित या ब्राहाम्ण से आंवला नवमी की कथा सुनें या स्वयं भी इसका पाठ कर सकती हैं। इस दिन सुख समृद्धि की कामना करते हुए वृक्ष के नीचे बैठ कर भोजन करना शुभ माना जाता है।
आंवला नवमी की कथा पर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि एक राजा रोजाना सवा मन आंवला दान करने के बाद ही भोजन करता था। जिसके कारण उसे आंवल्या राजा कहा जाने लगा, लेकिन आंवले का दान करना उसके पुत्र और पुत्रवधु को रास नहीं आया। वो सोचने लगे की राजा ऐसे आंवले का दान करेगा तो सारा खजाना खाली हो जाएगा। राजा के पुत्र ने उसे ऐसा करने से रोका, इससे दुखी होकर राजा ने रानी के साथ महल छोड़ने का फैसला लिया और जंगल चले गए।
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जंगल में प्रण के अनुसार राजा ने बिना आंवला दान किए 7 दिनों तक भोजन नहीं किया। राजा की तपस्या और दृढ़ता को देख भगवान खुश हुए और राजा के महल बाग बगीचे जंगल के बीचोंबीच ही खड़े हो गए। उधर राजा के पुत्र और पुत्र वधु का राजपाट दुश्मनों ने छीन लिया। आखिर में दोनों को अपनी भुल का एहसास हुआ और वो राजा और रानी के पास वापस आ गए।


