शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजनिया की तीन सदस्यीय विशेष बेंच ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट किया। बेंच ने कोर्ट रेकॉर्ड में दर्ज किया कि देश के लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव अदालत में उपस्थित थे। यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया कि शीर्ष अधिकारियों को अदालत के निर्देश सीधे तौर पर बताए जाएँ और वे स्वयं समस्याओं और समाधान की निगरानी करें।
हालांकि, इस दौरान एक बिंदु ने अदालत का ध्यान अपनी ओर खींचा—केरल के मुख्य सचिव सुनवाई में उपस्थित नहीं थे। उनकी जगह प्रधान सचिव कोर्ट में पहुंचे थे। इस पर कोर्ट ने असंतोष जताया, लेकिन आवेदन को स्वीकार करते हुए सुनवाई आगे बढ़ाई। अदालत ने कहा कि यह विषय संवेदनशील है और इसमें किसी भी तरह की उदासीनता स्वीकार्य नहीं होगी।
बेंच ने आवारा कुत्तों से जुड़े बढ़ते हमलों, रेबीज जैसी बीमारियों के फैलाव, और नागरिकों—विशेषकर बच्चों व बुजुर्गों—की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता जताई। कोर्ट ने यह भी कहा कि पशु अधिकार और मानव सुरक्षा के बीच संतुलन बनाया जाना जरूरी है, मगर आम जनता की सुरक्षा सर्वोपरि है।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने, वैक्सिनेशन कार्यक्रम तेज करने, नसबंदी अभियान को प्रभावी ढंग से लागू करने और शिकायतों के समाधान के लिए सिस्टम को मजबूत करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही यह भी कहा गया है कि नगर निकायों को जवाबदेही तय करनी होगी।
कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 7 नवंबर तय की है और उस दिन तक जरूरी रिपोर्ट पेश करने को कहा है। बेंच ने दोहराया कि “अगर निर्देशों का पालन नहीं हुआ तो फिर पेशी होगी”— यानी अधिकारी फिर से अदालत में पेश होकर जवाब देंगे।
इस फैसले से स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट अब इस मुद्दे को टालने के मूड में नहीं है। आने वाली सुनवाई में यह तय होगा कि क्या राज्य सरकारें इस चुनौती को गंभीरता से लेकर ठोस कदम उठाती हैं या फिर उन्हें अदालत के कड़े रुख का सामना करना पड़ेगा।
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